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Hospital: स्थाई डॉक्टर की आस में, चमचमाती करोड़ो की बिल्डिंग, शो पीस बन गई, इलाज के अभाव में, गरीब वर्ग पर आर्थिक बोझ…पढ़िए।

कुकड़ेश्वर – शिक्षा व स्वास्थ्य के प्रति अखण्ड भारत सदैव सजग रहा है। और ऐसे कई मानवीय विषय है जिनके आधार पर भारत देश प्रारम्भिक काल में विश्वगुरु कहलाया है।
धीरे धीरे विज्ञान के बढ़ते कदमो ने कई हाईटेक उपलब्धिया हासिल करते हुए देश के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। विदेश, देश व प्रदेश के विकास के साथ साथ, क्या ग्रामीण क्षेत्र में भी मूलभूत सुविधाये गरीब वर्ग के हिस्से की, उस गरीब वर्ग को सहजता से मिल पा रही है? अगर राजनीति का व प्रशासनिक पद का चस्मा हटाकर देखे तो, आज भी गरीब वर्ग शासन द्वारा बनाई गयी योजनाओ व संस्थानों से अपने अधिकारो से वंचित है। कदम कदम पर भ्रष्टाचार आज शिष्टाचार बन गया है। आज अपराधिक लोग – सभ्य दिख रहे है व फरियादी लोगो से अपराधियो जेसे सवाल पूछे जा रहे है। नियम कानून सब गरीब तबके के लोगो के लिए पालन योग्य रह गए है। गरीब वर्ग का पीड़ित व्यक्ति पुलिस थाना, अस्पताल, स्कुल आदि सरकारी संस्थानों में अपनी पीड़ा या हक जताता है तो, उसे टरकाने की परम्परा शीर्ष पर है। वहीँ धनाढ्य या अपराधो में लिप्त व्यक्ति इन्ही संस्थानों में बेबाक तरीके से अपने मंसूबो को पूरा कर रहे है।

शिक्षा का व्यवसायीकरण इतना हावी है कि विभाग द्वारा जांच के नाम पर महज खानापूर्ति तक सिमित है। निजी शिक्षण संस्थानों का वास्तविक मूल्यांक शासन के नियमानुसार हो, तो 80 प्रतिशत से अधिक निजी विद्यालयो के ताले लग सकते है। एक मोटी रकम की व्यावसायिक शिक्षा के केंद्र, अपना पराया या किसी जनप्रतिनिधि के सम्बन्ध या नाम के प्रभाव में शिक्षा किस हद तक व्यवसायिक रूप लेगी, यह कल्पना करके भी मन आहत होता है। शायद शासन के लिए बड़ी आय का स्त्रोत होता होगा।

शासन को आय न मिलने व सीधे सीधे नुकसान देने वाले सरकारी अस्पतालों की स्थितियां दयनीय है। ब्लॉक व जिला स्तर के सरकारी अस्पताल में गरीब व पीड़ित वर्ग का इलाज करने की बजाय, रेफ़र करने का खेल चरम पर है। क्योकि इलाज न करके रेफ़र करने आड़ में खासी कमाई का जरिया बन चूका है। और आये दिन घटनाये सार्वजनिक हो रही है। पर आज तक कोई ठोस कार्यवाही नही हुई न कोई ठोस निर्णय लिए गए।
जमीनी बात करे उदाहरण के तोर पर तो नीमच जिले के कुकड़ेश्वर नगर में करोडो रूपये का आलिशान शासकीय प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र डॉक्टरों की व स्टाफ की कमी के कारण वीरान है। इस अस्पताल का लाभ लगभग 50 गाँवों के लोगो को मिल सकता है। पर विडम्बना देखिये कि संविदा के आधार पर एकाद डॉक्टर की टेम्परेरी व्यवस्था होती है और उसे भी कभी रामपुरा तो कभी मनासा के लिए अलग ड्यूटी पर लगाकर, कुकड़ेश्वर क्षेत्र के गरीब लोगो को इलाज से वंचित रखा जा रहा है। क्षेत्र के जनमानस द्वारा हजारो बार शासन प्रशासन से कुकड़ेश्वर के इस प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के उन्नयन के लिए आग्रह निवेदन किया जा चूका है पर समस्या जस की तस बनी हुई है।

ज्ञात हो की क्षेत्र के जनप्रतिनिधि या जिम्मेदार अधिकारियो से अस्पताल के विस्तार की बात जब जब भी की गई, तब तब जिम्मेदारो द्वारा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र होने से अभावो का हवाला देकर इतिश्री कर ली जाती है। बात थोड़ी समझ से परे है पर विचारणीय है कि लगभग 50 गाँवो के लोगो को सरकार की योजना व सरकारी इलाज का लाभ मिलना चाहिए था, तो प्राथमिक अस्पताल की डिमांड किसने की! और अगर प्राथमिक अस्पताल बन गया तो सिविल हॉस्पिटल की व्यवस्था देने में क्या आफत है। ये क्षेत्र के गरीब वर्ग के लोगो की अनार्थिक मांग है, प्राथमिक को सिविल करने में सरकार पर कौन सा भार बढ़ जायेगा। दूसरा करोड़ो की बिल्डिंग आलरेडी बनी हुई है तो, सरकार को एक रुपया अलग से खर्च करने की जरूरत ही नही है। जरूरत है तो महज कुछ डॉक्टर्स की व कुछ स्टाफ की। ऐसे में व्यथित मन कहता है कि या तो जनप्रतिनिधि व जिम्मेदार लोग कुकड़ेश्वर के शासकीय प्राथमिक अस्पताल का विस्तार चाहते ही नही है? कुकड़ेश्वर क्षेत्र के हजारो गरीब वर्ग के प्रति संवेदलशील नही है। या यह माना जाए कि कुकड़ेश्वर क्षेत्र के जनप्रतिनिधि व बुद्धिजीवी बस हां में हां मिलाने तक सिमित है। तर्क लगाये व क्षेत्र को न्याय दिलाये। समस्या व्यक्ति विशेष नही है। पर समस्या इतनी विशेष भी नही है जिसका हल महज एक पत्र के आधार पर 24 घण्टे में हल हो सकता है। खेर…सच लिखना पत्रकार का कर्तव्य है…पालन करने वाले व अनुसरण करने वाले, किस हद तक इस खबर को समझ पाते है ये…समय पर छोड़ते है।

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Author: MP7 News

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